आईआईटी कानपुर सेंटर फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम के विशेषज्ञ भूवैज्ञानिकों ने चित्रकूट के विभिन्न भूवैज्ञानिक और सांस्कृतिक विरासत स्थलों का दौरा किया। टीम क्षेत्र के जियोपार्क के रूप में विकसित होने और यूनेस्को की मान्यता प्राप्त करने की सम्भाव्यता का आकलन कर रही थी। चित्रकूट उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों के लिए एक सांस्कृतिक स्थल है और इसे ‘तपोभूमि’ कहा जाता है, जहां भगवान राम अपने वनवास की अवधि के दौरान 11 वर्षों से अधिक समय तक रहे और राम ने अपने पिता दशरथ का अंतिम संस्कार भी किया। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व उप महानिदेशक एवं सेंटर फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम सेंटर फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम के सलाहकार डॉ. सतीश त्रिपाठी ने कहा, ‘चित्रकूट एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक पर्यटन स्थल है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह अंतर्राष्ट्रीय महत्व की भूवैज्ञानिक विरासत से भरा हुआ है। डॉ. सतीश त्रिपाठी ने समझाया: ‘स्ट्रोमेटोलाइट्स का उदाहरण लें: जानकी कुंड के पास मंदाकिनी के नदी तल में पाए गये जीवाश्म पृथ्वी पर पहले जीवन रूप हैं। 1600 मिलियन वर्ष पुराने इन नीले-हरे शैवाल जीवाश्मों ने कार्बन डाइऑक्साइड का उपभोग करके पृथ्वी के पर्यावरण को बदल दिया और ऑक्सीजन का उत्सर्जन किया और इसे रहने योग्य बना दिया। टीम के एक अन्य वैज्ञानिक डी. एस..एन .कॉलेज उन्नाव के डॉ. अनिल साहू ने कहा कि चित्रकूट में भू-पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। टीम नें विभिन्न भू पर्यटन स्थलों का सर्वेक्षण किया और निष्कर्ष निकाला जाता है कि चित्रकूट क्षेत्र में ग्लोबल जियोपार्क के रूप में विकसित होने की क्षमता है और इसे यूनेस्को की मान्यता मिल सकती है। जिले के सेवायोजन अधिकारी डॉ. पी.पी.शर्मा एवं स्थानीय सहयोगी डॉ. अश्वनी अवस्थी नें स्थानीय भू पर्यटन स्थलों की लिस्टिंग में महत्वपूर्ण सहयोग किया डॉ. सतीश त्रिपाठी ने बताया कि इस क्षेत्र को यूनेस्को के ग्लोबल जियो पार्क की लिस्ट शामिल करनें के लिए वे उत्तर प्रदेश सरकार एवं मध्य प्रदेश को एक रिपोर्ट सौंपने जा रहे हैं।